गुज़रे हुए वक़्त के
एक दर्द भरे लम्हे ने
कल के किसी हसीं ख्वाब से
झल्लाकर कहा
कम से कम मैं
हुआ तो था,
तुम तो शायद कोख़ से
बाहर ही नहीं आओगे,
हँसता हुआ ख्वाब
धीरे से बोला
अरे पागल ! किसने कहा
कि मैं नहीं होता
हकीक़त बनूँ ना बनूँ
पर मैं होता ज़रूर हूँ
मुझसे ही आदमी है,
कैफ़ियत है, ज़िन्दगी है
मुझसे ही तुम भी हो
मेरे जैसे ही किसी
ख्वाब में तुम हुए
ये सब हर तरफ देखो
सब एक ख्वाब ही तो है
बस अभी टूटा नहीं है
|| Roman Transliteration ||