Friday, June 17, 2011

चोर सिपाही

फलक से कुछ ऊपर
एक नादान सा तारा
पूरी रात मेरी खिड़की पर
टंगा खेलता रहा
मैं टकटकी लगाए
उसका ध्यान रखता रहा
सिर्फ इक पल को मेरी आँखें
झपकी में बंद हुईं
बस तभी वो चालाक चोर
भरी रात में उसे तोड़ ले गया

Sunday, June 12, 2011

चाँद

फिर किसी बात पर चाँद बिगड़ गया
आज रात फिर अमावस होगी
फिर अंधियारा पसरेगा
तुमसे कहा था ना
चाँद से यूं उलझा न करो

बिन कोरी चांदनी अब
कैसे मैं पड़ोस घर
आलन लेने जाऊंगी
कैसे बर्तन भांडे होंगे
ढ़ोरों को चारा होगा
कैसे मुन्ना सोवेगा

तुम कैसे खेतों को बाचोगे
अब तो ये मुई गाय भैंसे भी
रोशनी बिन पूरी रात
घुड़मुड घुड़मुड करने लगी हैं

फिर किसी बात पर चाँद बिगड़ गया
तुमसे कहा था ना
चाँद से यूं उलझा न करो
उफ़. पूरा महीना निकल जायेगा
अब उसे मनाते मनाते

Wednesday, June 1, 2011

आग

मेरी खिड़की पर रखा पानी
पीने वाली चिड़िया
आज नहीं आई |
कबीरा कहता है
जंगल में कोई
बड़ी आग लगी है,
कई पेड़ राख
हो गए हैं,
ढोर परिन्दों की
कोई ख़बर नहीं |

कल रात के सन्नाटे में
लड़खड़ाती हुई उस लड़की को
जंगल की ओर जाते देखा था
गाल पे सूखे हुए आसूं
एक हाथ में मशाल
और दूसरे में
कुछ उधड़े हुए सपने थे |