Tuesday, February 7, 2012

On Snow in Seattle

इस साल बर्फ़
इतनी मायूस क्यों है
ना वो शरारत है
ना वो नादानी
गाड़ी के शीशे से
हटाने को हाथ फेरो
तो तंग भी नहीं करती
अलग हो लेती है
कहीं और जा बैठती है

पिछले बरस ये ऐसी
चुपचाप नहीं थी
हाथ पकड़ कर, ज़िद करके
खुद खेलने ले जाती थी
कभी काँधे पे
चढ़ जाती थी
तो कभी पैर में
लिपट जाती थी
ये बर्फ खिखिलाती थी
जब कमीज़ में छुपकर
ज़ोर से गुदगुदाती थी

पर इस बरस
अकेली सी रहती है
पिछली बार जो सफ़ेद दुपट्टा
हठ करके सिलवाया था
किसी कफ़न की तरेह
ओढ़े बैठी है
पूछो, तो कुछ कहती नहीं
देखो, तो ज़रा हँस देती है
दिल की बीमार लगती है अपनी बरफां
अब शायद छोटी गुड़िया नहीं रही
..बड़ी हो गयी है

Thursday, January 19, 2012

Rubaai

surprisingly, a walkable night in Seattle. and writerly too !
:~
कुछ भोली सहमी रातें
आधी अधूरी मुलाकातें
कल जेब में मिलीं कुछ
पिछले सफ़र की बातें

--Seattle, Jan 8 2012