Thursday, December 15, 2011

on winters in Seattle ...

सर्दियों में ये शहर
एक ही रात पहने
कई दिन गुज़ार देता है
रात भी अब
रंग छोड़ने लगी है
शहर काला पड़ता
जा रहा है
कभी कभार धूप के कुछ
छीटें मार लेता है
तो यह कालिख थोड़ी
धुल जाया करती है
चेहरे पर कुछ चमक
आ जाया करती है

सर्दियों में ये शहर
एक ही रात पहने
कई दिन गुज़ार देता है

Tuesday, December 6, 2011

6th December

Anniversary of Babri Masjid Demolition... An old piece that, I feel, says what I want to say

दिसम्बर की सर्दी थी पर
यहाँ गरम हवाएं चली थीं
राख हो गया था सारा मोहल्ला
वो साथी वो रिश्ते वो नाते
वो हँसते खेलते बचपन
वो बच्चों का स्कूल जाना
वो दादा दादी की कहानियां
वो माँ के हाथ का खाना
वो ईद वो दीवाली
वो मेरे घर को तेरा आना
वो वाह वाह वो तर्रन्नुम
वो बैठक वो महफ़िल ज़माना

दिसम्बर की सर्दी थी पर
यहाँ गरम हवाएं चली थीं
तूफ़ान सा उठता
चला आता था
मुझे तुझमें
और तुझे मुझमें
फर्क नज़र आता था
वो किस बात का
खून खराबा था
आँगन में मिली थीं
जिन बच्चों की लाशें
उनसे तो तुझे भी मोहब्बत थी
और मुझे भी
बस वही हम दोनों को
इंसान बनाता था