कब आती हो कब चली जाती हो
कुछ इल्म ही नहीं होता
तुमसे इतनी बातें करनी हैं
राज़ खोंलने हैं किस्से कहने हैं
पिछली बार जब चाँद की
शमा जलाकर हम तुम बैठे
थे तो दिल की न जाने
कितनी गिरहें खोली
कितने सवाल बीने
बहुत सुकूँ मिला
सुनो .. इस बार
थोडा रुक के जाना
कब आती हो कब चली जाती हो
कुछ इल्म ही नहीं होता
तुमसे इतनी बातें करनी हैं
राज़ खोंलने हैं किस्से कहने हैं
पिछली बार जब चाँद की
शमा जलाकर हम तुम बैठे
थे तो दिल की न जाने
कितनी गिरहें खोली
कितने सवाल बीने
बहुत सुकूँ मिला
सुनो .. इस बार
थोडा रुक के जाना