Thursday, April 28, 2011

रात

कब आती हो कब चली जाती हो

कुछ इल्म ही नहीं होता

तुमसे इतनी बातें करनी हैं

राज़ खोंलने हैं किस्से कहने हैं

पिछली बार जब चाँद की

शमा जलाकर हम तुम बैठे

थे तो दिल की न जाने

कितनी गिरहें खोली

कितने सवाल बीने

बहुत सुकूँ मिला


सुनो .. इस बार

थोडा रुक के जाना