किसी सिराने रखी  
किताब की तरह
तुम्हारी यादों को
उठाकर पन्ने पलटते 
पलटते आज बहुत
दूर निकल गया |
दिखाई दिया उस
ऊंघते शहर का
वो पुराना मकान 
जिसकी बालकनी की
रेलिंग का हत्था
मैंने शरारत में
तोड़ दिया था
वो आज भी 
टूटा हुआ है |
तुम्हारी रसोई
बहुत लाचार है ,
जहां तुम मर्तबान 
रखती थीं वहाँ
जाले आ गए हैं
पर उनके अचार 
की खुशबू  आज भी 
वहीँ रहती है |
वहीँ बरामदे की दीवार पर
शीशम की लकड़ी वाला
वो चकोर सा आइना है
जिसमे शायद मेरा
सारा बचपन कैद है
काश वो आइना 
उसे फिर दिखा सकता