इस साल बर्फ़
इतनी मायूस क्यों है
ना वो शरारत है
ना वो नादानी
गाड़ी के शीशे से
हटाने को हाथ फेरो
तो तंग भी नहीं करती
अलग हो लेती है
कहीं और जा बैठती है
पिछले बरस ये ऐसी
चुपचाप नहीं थी
हाथ पकड़ कर, ज़िद करके
खुद खेलने ले जाती थी
कभी काँधे पे
चढ़ जाती थी
तो कभी पैर में
लिपट जाती थी
ये बर्फ खिखिलाती थी
जब कमीज़ में छुपकर
ज़ोर से गुदगुदाती थी
पर इस बरस
अकेली सी रहती है
पिछली बार जो सफ़ेद दुपट्टा
हठ करके सिलवाया था
किसी कफ़न की तरेह
ओढ़े बैठी है
पूछो, तो कुछ कहती नहीं
देखो, तो ज़रा हँस देती है
दिल की बीमार लगती है अपनी बरफां
अब शायद छोटी गुड़िया नहीं रही
..बड़ी हो गयी है
4 comments:
wow, mayus nahin barf badi ho gayi....
amazing poem man,you captured seattle pretty well
Very touching, it feels like the snow is used to express some deep thoughts and feelings
Khoobsurat...
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