Tuesday, February 7, 2012

On Snow in Seattle

इस साल बर्फ़
इतनी मायूस क्यों है
ना वो शरारत है
ना वो नादानी
गाड़ी के शीशे से
हटाने को हाथ फेरो
तो तंग भी नहीं करती
अलग हो लेती है
कहीं और जा बैठती है

पिछले बरस ये ऐसी
चुपचाप नहीं थी
हाथ पकड़ कर, ज़िद करके
खुद खेलने ले जाती थी
कभी काँधे पे
चढ़ जाती थी
तो कभी पैर में
लिपट जाती थी
ये बर्फ खिखिलाती थी
जब कमीज़ में छुपकर
ज़ोर से गुदगुदाती थी

पर इस बरस
अकेली सी रहती है
पिछली बार जो सफ़ेद दुपट्टा
हठ करके सिलवाया था
किसी कफ़न की तरेह
ओढ़े बैठी है
पूछो, तो कुछ कहती नहीं
देखो, तो ज़रा हँस देती है
दिल की बीमार लगती है अपनी बरफां
अब शायद छोटी गुड़िया नहीं रही
..बड़ी हो गयी है

4 comments:

m s rathi said...

wow, mayus nahin barf badi ho gayi....

Madhur said...

amazing poem man,you captured seattle pretty well

sweetsonu said...

Very touching, it feels like the snow is used to express some deep thoughts and feelings

Bani said...

Khoobsurat...