Hindi Poetry | Travelogues
Thursday, January 24, 2008
कुछ मीठा हो जाये
तो मियाँ
खुदा न खास्ता
अगर ज़िंदगी
इक पल की
मिले तुमको
तो क्या करोगे |
हम भी
तपाक से बोले
"जलेबी खायेंगे "
कमाल करते हैं जनाब
यहाँ जीने मरने
का सवाल है
और आपको
जलेबी का ख्याल है
अमां जलेबी को
कम न आन्किये
इस गोल-गुलैया में
ज़रा गौर से झांकिए |
इसके पीछे
बादशाह लड़ गए,
बडे बडे
साम्राज्य ढल गए |
राज़ की बात है
ऊपर भी इसकी पूछ है
जन्नत-ओ-जहाँ का
यह टिकाऊ रूट है |
खैर छोडिये
आप भी
किस बात को लेकर
बैठ गए |
कटरे की शाम है
गर्मागर्म चाय,
कल्लन से कहिये
कुछ जलेबी ले आये
A nostalgic Ad from the nineties ..
3 comments:
Nemo
said...
Nice poem...and nice ad :)
April 27, 2008 at 9:05 PM
Nirmal Mehta
said...
am i having a deja vu?
btw, nice poem :)
April 30, 2008 at 11:04 PM
Rohit
said...
Nice one!
July 1, 2008 at 12:47 PM
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3 comments:
Nice poem...and nice ad :)
am i having a deja vu?
btw, nice poem :)
Nice one!
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