Thursday, January 24, 2008

कुछ मीठा हो जाये

तो मियाँ
खुदा न खास्ता
अगर ज़िंदगी
इक पल की
मिले तुमको
तो क्या करोगे |

हम भी
तपाक से बोले
"जलेबी खायेंगे "

कमाल करते हैं जनाब
यहाँ जीने मरने
का सवाल है
और आपको
जलेबी का ख्याल है

अमां जलेबी को
कम न आन्किये
इस गोल-गुलैया में
ज़रा गौर से झांकिए |
इसके पीछे
बादशाह लड़ गए,
बडे बडे
साम्राज्य ढल गए |
राज़ की बात है
ऊपर भी इसकी पूछ है
जन्नत-ओ-जहाँ का
यह टिकाऊ रूट है |

खैर छोडिये
आप भी
किस बात को लेकर
बैठ गए |
कटरे की शाम है
गर्मागर्म चाय,
कल्लन से कहिये
कुछ जलेबी ले आये


A nostalgic Ad from the nineties ..


3 comments:

Nemo said...

Nice poem...and nice ad :)

Nirmal Mehta said...

am i having a deja vu?
btw, nice poem :)

Rohit said...

Nice one!