Sunday, July 17, 2011

इस हफ्ते मकाँ बदलना है

इस हफ्ते मकाँ बदलना है
खुद कहीं लापता हूँ
पर पता बदलना है
इस हफ्ते मकाँ बदलना है

कुछ फ़ुरसत मिली तो आज
अपने कमरे में कुछ देर
तक यूँ ही डोलता रहा |
दो साल पहले जिस ज़िन्दगी
को चंद बक्सों में
उठा कर ले आया था
वो इस कमरे के कौने कौने
में ऐसे फ़ैल चुकी थी
जैसे किसी दीवार से
लिपटी हुई बेल हो जिसकी
ना तो शुरुआत का पता
चलता है ना ही अंत का |
कहीं फर्नीचर, कहीं किताबें
कुछ गैजेट्स, कुछ कपड़े,
कहीं पेड़ पौधे, कहीं साज़
कुछ अधूरी पड़ी नज्में |
कितना कुछ उठाया जायेगा,
पहुँचाया जायेगा
और फिर से सजाया जायेगा
कुछ टूट जायेगा
कुछ यहीं छूट जायेगा
कुछ खो जायेगा
शायद कुछ मिल भी जायेगा

यूँ तो एक आफत एक झंझट ही है ये
मगर दिल को कुछ सुकूँ भी होता है
के इतना भी आवारा नहीं हूँ मैं
मुझसे भी एक घर सा बनता है
मेरे साथ भी ..
.. कुछ सामान चलता है

1 comment:

Sandeep said...

awesome....bahut hi mast likha hai !!