Monday, October 3, 2011

हाथ

हाथ सीख जाते हैं,
सीख जाते हैं एक नन्ही सी जान
को गोद में उठा लेना
एक बुज़ुर्ग को सहारा देना
अंधे को आँख देना
तबले को ताल देना
रोड़े ईंट पत्थरों को फोड़ना
या नाज़ुक से फूल को तोडना

हाथ समझदार हैं,
समझते हैं क्या ज़ुरूरी है
मन भले चंचल सा भटकता रहे
पर ये स्थिर होकर
काम करना जानते हैं
एक बच्चे की पीठ थपथपाकर
हौंसला बढ़ाना जानते हैं
एक दोस्त के काँधे पर हाथ रखकर
तसल्ली देना जानते हैं

हाथ ज़िद्दी हैं, गुस्सैल हैं,
जो मुठ्ठी भीच लूं
तो कुछ तोड़ के ही दम लेते हैं
किसी नारे के लिए उठ जायें
तो आवाज़ को ललकार बना देते हैं
और जो हज़ारों हाथ साथ दे जाएँ
तो क्रांति ला देते हैं
तख्ता पलट देते हैं
इतिहास बना देते हैं

हाथ रूमानी हैं,
प्यार करना जानते हैं
हाथ में उसका हाथ में आते ही
पिघल से जाते हैं
कोमल हो जाते हैं
परवाह करने लगते हैं
किसी का ख़याल करने लगते हैं
उसकी उँगलियों में इन उँगलियों को
ऐसे फंसा लेते हैं
जैसे इन्हें एक दूसरे के लिए ही
बनाया गया हो

हाथ खूबसूरत हैं,
श्रृंगार करते भी हैं
श्रृंगार बनते भी हैं
और बेहद खूबसूरत
तो वो दो हाथ थे,
वो झुर्रियों से
गढ़े हुए दो हाथ,
वो जर्जर सूख चुके दो हाथ,
जिन्होंने कलकत्ता की सड़को से
एक एक कोढ़ी को उठाकर
नहलाया, इज्ज़त के साफ़ कपडे पहनाये
रहने के लिए छत दी
और जी सकने लिए एक उम्मीद

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