Anniversary of Babri Masjid Demolition... An old piece that, I feel, says what I want to say
दिसम्बर की सर्दी थी पर
यहाँ गरम हवाएं चली थीं
राख हो गया था सारा मोहल्ला
वो साथी वो रिश्ते वो नाते
वो हँसते खेलते बचपन
वो बच्चों का स्कूल जाना
वो दादा दादी की कहानियां
वो माँ के हाथ का खाना
वो ईद वो दीवाली
वो मेरे घर को तेरा आना
वो वाह वाह वो तर्रन्नुम
वो बैठक वो महफ़िल ज़माना
दिसम्बर की सर्दी थी पर
यहाँ गरम हवाएं चली थीं
तूफ़ान सा उठता
चला आता था
मुझे तुझमें
और तुझे मुझमें
फर्क नज़र आता था
वो किस बात का
खून खराबा था
आँगन में मिली थीं
जिन बच्चों की लाशें
उनसे तो तुझे भी मोहब्बत थी
और मुझे भी
बस वही हम दोनों को
इंसान बनाता था
No comments:
Post a Comment