Wednesday, June 1, 2011

आग

मेरी खिड़की पर रखा पानी
पीने वाली चिड़िया
आज नहीं आई |
कबीरा कहता है
जंगल में कोई
बड़ी आग लगी है,
कई पेड़ राख
हो गए हैं,
ढोर परिन्दों की
कोई ख़बर नहीं |

कल रात के सन्नाटे में
लड़खड़ाती हुई उस लड़की को
जंगल की ओर जाते देखा था
गाल पे सूखे हुए आसूं
एक हाथ में मशाल
और दूसरे में
कुछ उधड़े हुए सपने थे |

2 comments:

Nirmal Mehta said...

Nice poem! Why kabir though? I would have liked to see your name.

Also Can't help think about your struggle to light a fire the other day :)

m s rathi said...

bahut khoob ........