Saturday, August 13, 2011
Friday, August 12, 2011
बेचैनी
रात भर घुलता रहा चाँद फ़लक पर
रात भर रोती रही हवा सिसक कर
रात भर तेरी यादों की चादर ओढ़े
बेचैन से बस, करवट बदलते रहे हम
शब्दार्थ :- फ़लक = sky
Saturday, August 6, 2011
बाज़ार
ये कौन सा बाज़ार है
जहां एहसासों को बेचा जाता है,
कारोबार के शोर में
सन्नाटों को फेंका जाता है,
खरीदारों की भीड़ में
तन्हाइयों को पेशा जाता है |
इन्हीं साजों सामानों के बीच
कुछ वो एहसास भी हैं
जिन्हें तुम कभी छोड़
गए थे मेरे पास,
एक अरसे से रखे हुए थे
मेरी मेज़ की ड्रोअर में |
मुफ़लिसी के इन दिनों में
ले आया हूँ अब उन्हें भी
नज्मों बज्मों की
इन दुकानों में,
शायद यहीं कुछ मोल मिल जाए,इस अजीब से बाज़ार में जहां
..जज़्बातों को बेचा जाता है
शब्दार्थ :- मुफ़लिसी = poverty
Monday, August 1, 2011
हिज्र की रात (Night of Separation)
याद है वो रात ?
जब हिज्र के दर्द में
हम घंटों रोये थे ,
वो सुर्ख सा पेड़ जिसकी
बेजान सी एक डाल तले
मेरी गोद में रखके सर
तुम भी एक बेजान सी
घंटों लेटी रहीं ,
ना मेरे पास
कोई जवाब था
ना तुम्हारे पास
कोई उम्मीद
उस रात के कुछ लम्हे
अब पक़ चुके हैं,
उम्र के साथ कुछ हसीं
भी हो आयें हैं,
और जहां हमने अपने सपनों
को दफ़्न किया था,
जाकर देखो वहाँ एक
फूल खिल आया है
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