याद है वो रात ?
जब हिज्र के दर्द में
हम घंटों रोये थे ,
वो सुर्ख सा पेड़ जिसकी
बेजान सी एक डाल तले
मेरी गोद में रखके सर
तुम भी एक बेजान सी
घंटों लेटी रहीं ,
ना मेरे पास
कोई जवाब था
ना तुम्हारे पास
कोई उम्मीद
उस रात के कुछ लम्हे
अब पक़ चुके हैं,
उम्र के साथ कुछ हसीं
भी हो आयें हैं,
और जहां हमने अपने सपनों
को दफ़्न किया था,
जाकर देखो वहाँ एक
फूल खिल आया है
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