Saturday, August 6, 2011

बाज़ार

ये कौन सा बाज़ार है
जहां एहसासों को बेचा जाता है,
कारोबार के शोर में
सन्नाटों को फेंका जाता है,
खरीदारों की भीड़ में
तन्हाइयों को पेशा जाता है |
इन्हीं साजों सामानों के बीच
कुछ वो एहसास भी हैं
जिन्हें तुम कभी छोड़
गए थे मेरे पास,
एक अरसे से रखे हुए थे
मेरी मेज़ की ड्रोअर में |
मुफ़लिसी के इन दिनों में
ले आया हूँ अब उन्हें भी
नज्मों बज्मों की
इन दुकानों में,
शायद यहीं कुछ मोल मिल जाए,
इस अजीब से बाज़ार में जहां
..जज़्बातों को बेचा जाता है

शब्दार्थ :- मुफ़लिसी = poverty