Wednesday, February 20, 2013

Respite

[Recollecting an old piece..]

beautiful weather in delhi ! wish i had a picture

रोज़ काम पर 
पसीने बहाने वाली
दिल्ली ने आज
अपने लिए कुछ समय निकाला,
पहली पहली बारिश में
ज़रा चैन से नहायी,
बुझती हुई शाम के रंग
में नारंगी सी साड़ी पहनी,
चढ़ती हुई रात से
थोडा काजल लगाया,
और डूबते हुए सूरज
की सुनहरी छठा में
आँखें मूँद कर
एक लम्बी सांस ली,
इत्मीनान की सांस,
सुकून की सांस,
तपते हुए बदन पर
किसी ने ठंडा हाथ
रख दिया हो जैसे

आज शहर में
महीनों बाद बारिश हुई


--Delhi, April 11, 2012

Delhi, yet again !

फिर दिल्ली 

इस शहर की बारिश 
अब भी 
उतनी ही जिद्दी है,
और मुझे देखकर तो
और भी बिगड़ जाती है,
हो भी क्यों ना 
महीनों जो खबर नहीं लेता 

फरवरी की इस सर्दी में
जब हर कोई घरों में बंद है
ये कल रात से ही
बैचैन बरस रही है,
मैं भी थक हारकर
वही पुराना शॉल ओढ़े
गुलज़ार साहब की
एक नज़्म लेकर
बैठ गया हूँ
खिड़की से लगे
आर्म चेयर पर,
कभी कागज़ पे आराम फरमाते
अल्फाजों को देखता हूँ
तो कभी बहार उमड़ते
सैलाब को


--Delhi, Feb 17, 2013

मुलाक़ात


फिर एक मुलाक़ात 
अधूरी रह गयी, 
फिर एक सवाल 
सवाल रह गया, 
ज़ेब में मिले 
सूखे हुए ख्याल, 
फिर उनका अलाव जलाकर 
ये सर्द रात काट रहा हूँ 
--Hyderabad, Jan 20, 2013

Stuck. :)

वो शहर 
सिर्फ छतों पर बसता था
वरना गलियों में तो 
पैर रखने की जगह नहीं

हम उसे छोड़ तो आये हैं
पर उसकी छतों से 
अब तक ..
उतर नहीं पाए

--Hyderabad, Jan 17, 2013

sankranti @ old city

images from an evening at the old city
पतंगें 

पुराने शहर का 
पतंगों से कुछ 
ख़ास ही वास्ता है 
जो इतनी सारी 
उमड़ पड़ती हैं 
हर साल इसी दिन 
इन्हीं ऊँची ऊँची 
छतों पर

और शहर ,
मखमली सी शाम ओढ़े
ईरानी चाय की चुस्की लेता
ओस्मानिया के बिस्कुट चबाता
5 नंबर का मोटा पुराना
मार्टिंस का चश्मा लगाये
बड़े गौर से
ताक रहा है
इन अनगिनत पतंगों को

लाल पीली नीली
बेजार चमकीली
छोटी बड़ी
कितनी पतंगें
पतंगों को काटती पतंगें
दुलारती पतंगें
और किसी किसी छोर पर
लालटेन ले जाती पतंगें
सक्रांति की अंधियारी
रात में शायद
रस्ता भूल चुके पंछियों को
राह दिखा रही हैं

इन्हीं अल्हड मस्त
पतंगों के बीच
ज़ारीन सी अदब वाला
हिलाल का वो चाँद
जो सबसे ऊपर उड़ रहा है
कभी नीचे क्यों नहीं आता !

काश ये चाँद भी
पतंग होता जानू
तो एक दूर का मंजा डालकर
इसे यहीं उतार लेता
इसी छत पर
..तुम्हारे लिए

Glossary : ज़ारीन = golden colored, अदब = well mannered, हिलाल = crescent shaped


--a rooftop @ old city, Hyderabad. Jan 13, 2013

Losing my self realization

कुछ उधड़े फंदों में 
झूल गया हूँ मैं 
खुद को कहीं रख के 
भूल गया हूँ मैं

Street Poetry

True to my U.P. roots, a total time pass street-shayari ..
नज़रों की धार से 
जो वार करती हो 
अच्छे खासे आदमों को 
बेकार करती हो 
किस किस के हवाले से 
सुनते आ रहे हैं हम 
दिलों का जो तुम 
कारोबार करती हो

--Hyderabad, January 10, 2013

New Year

To the years gone by, and the one in the coming.. In the end, they all reduce to a tiny smile at your own self. 
गुज़रे हुए वक़्त को समेटकर 
पोटली में रखते रहे हम 
आज उसे खोला भी तो क्या
एक ज़रा सी हँसी निकली

--Hyderabad, January 1, 2013

Kalam..


।। कलम ।।

कलम ..
गिर चुका है हाथ से
या शायद हो अभी
पर मुझे एहसास नहीं
क्योंकि ..
मैं देख नहीं सकता
और अब तो शायद
महसूस भी नहीं

कहते हैं लिखने में
दिल का होना ज़रूरी है
और दिल में जज़्बातों का,
रहा होगा शायद कभी
दिल भी मेरे पास
और उस दिल में
कुछ जज़्बात
जो क़ारोबार की
जद्दोजहद में
दम तोड़ गए
या शायद
मेरे ही हाथों
क़त्ल हो गए

अफ़सोस तो है
मगर डर भी लगता है
दिल से, जज़्बातों से
हैरत से, ख़यालों से
कहीं कमज़ोर न पड़ जाऊं,
ज़िन्दगी के शोर्ट स्प्रिंट में
ट्रैक से न भटक जाऊं

पिछले सालों के यार दोस्त
वो कुछ नज्में, कुछ रुबाई
जो बड़ी शिद्दत से लिखी थीं
कभी कभी आ जातीं हैं
मुझसे मिलने,
तो ख़ादिम से कह देता हूँ
के कह दो
नहीं रहता अब मैं यहाँ
नहीं रहता अब मैं यहाँ

कलम ..
शायद गिर चुका है हाथ से

--Hyderabad, Dec 24, 2012 

Stories

May be all we need to learn from his world are .. stories

एक कहानी 
और उसके अन्दर
कितनी सारी कहानियाँ
और उनके अन्दर और भी कहानियां 

कहानियों से ही 
बनी होगी ये दुनिया
वक़्त की लम्बी सलाई पे 
जज़्बातों की ऊन से
डाले होंगे उसने
कई सारे फंदे
बुने होंगे उसने
कई सारे किस्से
ज़िन्दगी हालात
और हम

एक कहानी
दूसरी को कहती हुई
तो एक कहानी
दूसरी को
सुनती हुई
खिलाती हुई
निखारती हुई
सँवारती हुई
बिगाड़ती हुई
साथ लेती हुई
काटती हुई
एक दुसरे में
उलझती हुई
पिघलती हुई
कहानियाँ ..

आज एक पल को
रुक के देखा तो
देखीं ..
कितनी सारी कहानियाँ


--ISB Hyderabad, Nov 26, 2012

That Yesterday's Rain

perks of staying back. windy atrium, not with assignments, but poetry!
कल की बारिश

आग सा 
बरसा है पानी आज,
बूंदों में कोई
अफरा तफरी सी है,
दबी हुई आग से
शोले भड़भड़ा
रहे हों जैसे

आज फिर
कोई क़त्ल करके
आई है ये बारिश,
कतरा कतरा खून
रिस रहा है कहीं,
वो पानी चल रहा है
या आंसूं बह रहा है कोई,
छटपटा रहा है कोई
पर हलचल नहीं होती,
चींख रहा है कोई
पर आवाज़ नहीं होती,
गरजते हुए कोहराम में
ज़ख्म पे पड़ते हैं
ये छीटें,
तो धार की तरह
काट देते हैं उन्हें,
छिल जाता है बदन
और गल सी जाती है रूह,
मिट जाते हैं सारे निशाँ
धुल जाते हैं सारे बिनाह
और सील जाते हैं सारे सुराह

में जानता हूँ इसे,
ये बारिश,
कातिलाना है
आज फिर किसी
दिल का खूँ हुआ है
आज फिर
कोई दिल कुर्बां हुआ है
ये बारिश..
कातिलाना है


--ISB Hyderabad, October 3, 2012

Beautiful evening, Lazy poetry...


दूर तक फैला हुआ
इस जवां शाम का
ये नारंगी आसमां,
पत्थरों से लब्दबी
ये सदियों पुरानी ज़मीं,
ये जहां मिलते हैं
कहते हैं वहाँ
कोई नहीं जाता,
ना कोई शख्स
ना कोई आवाज़
ना कोई ख्याल,
कोई मुझे
वहाँ ले चलो
बस..
वहाँ ले चलो

आज शाम को
बाईक पे निकला
तो बालों को सहलाते हुए
ठंडी महकती हवा
हौले से कान में
कुछ कहती हुई
ना जाने क्या निकल गयी
के मैं मौन, बे-खयाल, बे-आवाज़
बस आगे बढ़ गया,
फिर उसी दुनिया की तरफ
फिर उसी आसमां के नीचे
फिर उसी ज़मीं के ऊपर

दूर तक फैला हुआ
इस जवां शाम का
ये नारंगी आसमां

~:Thoughts on Independence day:~

~:Thoughts on Independence day:~
The land, my child, is never possessed never redeemed
Twas there before us and will remain when we're gone
Till it with respect, Claim it by love, and Protect it with blood
For in great pain and labor, this nation was born

Happy Independence Day !

--Hyderabad, 15 August 2012

On days and nights, at ISB...

दिन और रात

इस रात ही के सहारे
तो हम जिंदा हैं यहाँ
वरना दिन तो बेहद
ज़ालिम होता है
सख्त होता है,
तपती हुई गर्मी
चुभता हुआ सूरज
और पसीने में तर
हम

पर जब रात आती है
तो थोडा सुकून बरसता है
मंद सी एक
पुरवाई बहती है
चैन मिलता है
दुलार मिलता है
दिन भर की
जद्दो-जहद के बाद
माँ की गोद में
सर रख दिया हो जैसे

कभी कभी विलेज से
जब रात में टहलने
निकलता हूँ
यही सोचता हूँ
के कैसा होता..
जो ये रात ही यहाँ
हमेशा के लिए ..
ठहर जाती

--Hyderabad, May 1, 2012

a poet's nightmare..

ना किसी बात का मलाल, ना गिला, कोई जुस्तजू भी नहीं
मुझे ग़म है के मुझे कोई ग़म नहीं

--Delhi, April 2, 2012

ज़ाया कलाम (unwritten poetry)

ज़ाया कलाम (unwritten poetry)

कुछ नज्में लिखी नहीं जाती
वो हवाओं में पैदा होती हैं
और हवाओं में ही 
गुम हो जाती हैं,
सफ़ेद कागज़ के पुश्तैनी घर
उन्हें कैद नहीं कर पाते,
वे अल्हड़ होती हैं,
बाग़ी होती हैं, 
उस खूबसूरत
तितली की तरह
जो सिर्फ
एक दिन जीती है लेकिन
अपनी तर्ज़ पर

कुछ नज्में..
लिखी नहीं जाती

*बाग़ी = rebellious
*पुश्तैनी = ancestral


--Delhi, April 3, 2012

HAUZ KHAS VILLAGE

Visited the tiny village of hauz khas in south delhi. Remember the time when it was being stripped off its sanity in the increasing madness of capitalization of delhi, when tall unsafe buildings were being built flouting all building codes just to add more rooms to put on rent for easy money. Today, though those structures are still there, the village has been granted some quietude in its new avatar of an artisan village. Well whats gone is gone.., but I am happy for it.


HAUZ KHAS VILLAGE


तुम परेशान न होना..

मुझे याद है
बरसों पहले
जिस बेदर्दी के साथ
तुम्हें इस शहर से
बे दख्ल कर दिया गया था

तुम मूंह पर
सूखे हुए आसूं लिए 
चुपचाप चलीं गयी,
तुमने उफ्फ़ तक नहीं की,
तुम्हारे दिल से जो सवाल
चींख रहे थे 
उन्हें किसी नहीं सुना 
हुह ! 'डेवलेपमेंट'के नशे में धुत जो थे

पर तुम्हारी बेटी
जिसे तुम पीछे छोड़ गयीं 
वो अब..सयानी हो गयी है
कई सालों बाद
आज उसको देखा,
वो तुम्हारी तरह
सलवार कमीज़ तो नहीं पहनती
पर चस्प जयपुरी ब्लाक प्रिंट की
खूबसूरत साड़ी पहनती है,
बड़ी समझदार हो गयी है,
अंग्रेजी भी बोलती है,
हिम्मत तो शायद
तुमसे ही ली है,
आवाज़ भी
तुम पर ही गयी है

और सुनो..
उस भागती दौड़ती
झुंझलाती दिल्ली में
जिस गाँव में तुम
उसे छोड़ गयी थीं
उसने वहीँ..
एक छोटा सा सुन्दर कोना
अपने लिए ढून्ढ लिया है

तुम...
परेशान न होना


--Delhi, April 1, 2012

Mussoorie - Old & New

So long, Mussoorie & Landour..

इन बूढ़े पहाड़ों पर
क्या क्या बदल गया है
नए लोग निकल आये हैं
नए घर उग आये हैं
पर शाम अब भी...
वही सुर्ख नारंगी आती है
जैसे उम्र का पहिया
उस पर कभी चला ही नहीं

लंढौर की तंग गलियों से
ज़रा ऊपर निकलो
तो कुछ चीज़ों के
मानी ही बदल गए हैं
'क्लॉक टॉवर' रोड पर
'क्लॉक टॉवर' नहीं रहा
उसे तोड़ कर
कैफे बना दिया गया है
पर वहाँ सागवाँ के पत्ते
अब भी...
वैसे ही चुपचाप गिरते हैं,
चर्च के रस्ते पर
चढ़ते उतरते..
वैसे ही चुपचाप
कुछ पुराने यार मिलते हैं

इन बूढ़े पहाड़ों पर...


--Mussoorie, March 31, 2012

India 2.0

जब से तेरी धूल में उतरा हूँ मैं
तेरे साथ तेरी आग में जलता हूँ मैं
किताबें क्यों सभी, बेज़ार लगती हैं
जब से तेरी सलवटों को पढ़ता हूँ मैं

* बेज़ार = boring, useless

--India, March 22, 2012

Leaving Seattle..

छोड़े जाता हूँ ऐ शहर 
जो तुझे इस तरह
क्या ये इजाज़त है कि फिर भी 
तुझे अपना कह सकूं

--Seattle, March 12, 2012

Evening in Seattle..

On rainwashed earth, under fading sky 
the scent of'ur breath rolled deep inside
In t'sensual blue drape that set me dreamin' 
Seattle, you looked gorgeous this evening

--Seattle, June 8, 2011