फिर दिल्ली
इस शहर की बारिश
अब भी
उतनी ही जिद्दी है,
और मुझे देखकर तो
और भी बिगड़ जाती है,
हो भी क्यों ना
महीनों जो खबर नहीं लेता
फरवरी की इस सर्दी में
जब हर कोई घरों में बंद है
ये कल रात से ही
बैचैन बरस रही है,
मैं भी थक हारकर
वही पुराना शॉल ओढ़े
गुलज़ार साहब की
एक नज़्म लेकर
बैठ गया हूँ
खिड़की से लगे
आर्म चेयर पर,
कभी कागज़ पे आराम फरमाते
अल्फाजों को देखता हूँ
तो कभी बहार उमड़ते
सैलाब को
--Delhi, Feb 17, 2013
इस शहर की बारिश
अब भी
उतनी ही जिद्दी है,
और मुझे देखकर तो
और भी बिगड़ जाती है,
हो भी क्यों ना
महीनों जो खबर नहीं लेता
फरवरी की इस सर्दी में
जब हर कोई घरों में बंद है
ये कल रात से ही
बैचैन बरस रही है,
मैं भी थक हारकर
वही पुराना शॉल ओढ़े
गुलज़ार साहब की
एक नज़्म लेकर
बैठ गया हूँ
खिड़की से लगे
आर्म चेयर पर,
कभी कागज़ पे आराम फरमाते
अल्फाजों को देखता हूँ
तो कभी बहार उमड़ते
सैलाब को
--Delhi, Feb 17, 2013
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