दिन और रात
इस रात ही के सहारे
तो हम जिंदा हैं यहाँ
वरना दिन तो बेहद
ज़ालिम होता है
सख्त होता है,
तपती हुई गर्मी
चुभता हुआ सूरज
और पसीने में तर
हम
पर जब रात आती है
तो थोडा सुकून बरसता है
मंद सी एक
पुरवाई बहती है
चैन मिलता है
दुलार मिलता है
दिन भर की
जद्दो-जहद के बाद
माँ की गोद में
सर रख दिया हो जैसे
कभी कभी विलेज से
जब रात में टहलने
निकलता हूँ
यही सोचता हूँ
के कैसा होता..
जो ये रात ही यहाँ
हमेशा के लिए ..
ठहर जाती
इस रात ही के सहारे
तो हम जिंदा हैं यहाँ
वरना दिन तो बेहद
ज़ालिम होता है
सख्त होता है,
तपती हुई गर्मी
चुभता हुआ सूरज
और पसीने में तर
हम
पर जब रात आती है
तो थोडा सुकून बरसता है
मंद सी एक
पुरवाई बहती है
चैन मिलता है
दुलार मिलता है
दिन भर की
जद्दो-जहद के बाद
माँ की गोद में
सर रख दिया हो जैसे
कभी कभी विलेज से
जब रात में टहलने
निकलता हूँ
यही सोचता हूँ
के कैसा होता..
जो ये रात ही यहाँ
हमेशा के लिए ..
ठहर जाती
--Hyderabad, May 1, 2012
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