दूर तक फैला हुआ
इस जवां शाम का
ये नारंगी आसमां,
पत्थरों से लब्दबी
ये सदियों पुरानी ज़मीं,
ये जहां मिलते हैं
कहते हैं वहाँ
कोई नहीं जाता,
ना कोई शख्स
ना कोई आवाज़
ना कोई ख्याल,
कोई मुझे
वहाँ ले चलो
बस..
वहाँ ले चलो
आज शाम को
बाईक पे निकला
तो बालों को सहलाते हुए
ठंडी महकती हवा
हौले से कान में
कुछ कहती हुई
ना जाने क्या निकल गयी
के मैं मौन, बे-खयाल, बे-आवाज़
बस आगे बढ़ गया,
फिर उसी दुनिया की तरफ
फिर उसी आसमां के नीचे
फिर उसी ज़मीं के ऊपर
दूर तक फैला हुआ
इस जवां शाम का
ये नारंगी आसमां
इस जवां शाम का
ये नारंगी आसमां,
पत्थरों से लब्दबी
ये सदियों पुरानी ज़मीं,
ये जहां मिलते हैं
कहते हैं वहाँ
कोई नहीं जाता,
ना कोई शख्स
ना कोई आवाज़
ना कोई ख्याल,
कोई मुझे
वहाँ ले चलो
बस..
वहाँ ले चलो
आज शाम को
बाईक पे निकला
तो बालों को सहलाते हुए
ठंडी महकती हवा
हौले से कान में
कुछ कहती हुई
ना जाने क्या निकल गयी
के मैं मौन, बे-खयाल, बे-आवाज़
बस आगे बढ़ गया,
फिर उसी दुनिया की तरफ
फिर उसी आसमां के नीचे
फिर उसी ज़मीं के ऊपर
दूर तक फैला हुआ
इस जवां शाम का
ये नारंगी आसमां
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